पैतृक पृष्ठभूमि


स्व. प्रोफ़ेसर रूचि राम साहनी एवं श्रीमती ईश्वर देवी की तृतीय संतान बीरबल थे। अभी पश्चिम पंजाब के भाग और व्यापार का विकसित केंद्र, महमूद गज़नी मूर्ति भंजक के आक्रमण का वैशिष्ट्य रहा जिला शाहपुर में छोटे से कस्बे भेड़ा (भेरा) में उनका जन्म 14 नवंबर 1891 को हुआ था। सन्निकट हिस्सा जो भेरा के चहुंओर फैला है इस तथ्य से बढ़ा है कि यह छोटासा कस्बा नमक श्रृंखला से ज़्यादा दूर नहीं है जिसे वास्तविक तौर में ‘‘भू-विज्ञान का संग्रहालय’’ के रूप में परिभाषित किया जा सकता है। इन बंजर श्रृंखलाओं के अभियान, जहाॅं अत्यधिक रोचक घटनाओं के कुछ अनावरित और भारतीय भू-विज्ञान के भू-चिह्न स्थित हैं हमारे बाल्यकाल के दौरान भेरा जाने में प्रायः समेकित रहते थे। यहाॅं भू-वैज्ञानिक युग संबंधी कुछ पादप-धारक शैलसमूह मिलते हैं जिन्हें उत्तरवर्ती वर्षों में बीरबल ने महत्वपूर्ण योगदान दिया।
भेरा उनका पैतृक घर था लेकिन उनके माता-पिता एक समय क्षेत्र से बहुत-दूर वस्तुतः सिंधु पर देहरा इस्माल खाॅं के दिवास्वप्न पत्तन पर बस गए और बाद में लाहौर जाकर बस गए। प्रो. साहनी के पिता को देहरा इस्माल खाॅं से विपत्ति और कस्बे के नामी-गिरामी नागरिक उनके बाबा के स्वर्गवासी हो जाने की वजह से जाना प?ा। त?दीर बदलने की वजह से जिंदगी बदल गई और असमान हो गई। अभयभीत, रूचिराम साहनी ने स्कूल पहुंचने के लिए देहरा इस्माल खाॅं से झंग तक 150 मील से ज्यादा की दूरी तय की। बाद में उन्होंने अपने आपको भेरा और लहौर का प्रतिष्ठित विद्यार्थी बना लिया। उन्हें जो छात्रवृत्तियाॅं मिलीं उन्हीं से पूरी प?ाई की। इस प्रकार उनकी प?ाई-लिखाई विकट स्कूल समस्या में हुई तथा वह पूर्णतः स्वनिर्मित व्यक्ति थे। प्रो. रूचि राम साहनी उदार विचारों वाले व्यक्ति थे, और अपने जीवन के दरम्यान एक प्रगतिशील धार्मिक एवं सामाजिक लहर जिसने अभी-अभी ज? पक?ी थी के पंजाब में ब्रह्मो समाज आंदोलन के नेता बन गए। निःसंदेह पिता ने अपने शुरू के दिनों में कलकत्ता में अपने प?ाव के दौरान इन विचारों को अंतःशोषण किया। जाति से पूर्णतः विद्रोह करते हुए उन्होंने अपने विचारों को प्रायोगिक विचार प्रदान किया। जब बुलावा आया तो पिता जो उस समय उन्नतशील व्यक्ति थे स्वर्ण मंदिर के सरोवर की घुटनों तक पवित्र मिट्टी में ख?े हुए तथा जमी हुई गाध की सफाई में अपने दुर्बल कंधों पर डलिया भरकर फेंकी। उनके धर्म की कोई सीमा नहीं थी। सदैव देश भक्त, वह आजादी के लिए तन-मन से जूझे तथा गुरू का बाग नौकरशाही के डंडे भी झेले। अपने देश-वासियों के लिए वह बहादुरी से ल?े तथा कई बार गिरफ्तारी के कगार पर थे। उस समय की सरकार ने लगभग 1922 में जब उन्हें शीर्षक से सम्मानित किया गया उन्होंने तमगा लौटा दिया, प्रो. रूचि राम साहनी की पेंशन समाप्ति की धमकी दे गई, लेकिन उनका उत्तर केवल इतना था कि उन्होंने सभी संभव परिणामों के बारे में सोचा था और कार्यवाई को पहले ही भांप लिया था। उन्होंने अपनी पेंशन बरकरार रखी। यह अपरिहार्य था कि इन घटनाओं ने परिवार पर अपनी छाप छो?ी तथा बीरबल द्वारा भी आत्मसात की गईं। यदि बीरबल कांग्रेस आंदोलन के कट्टर समर्थक बने, यह पिता के जीवित उदाहरण का छोटा सा उपाय न था। पंजाब में उस वक़्त राजनैतिक गतिविधियों का केंद्रा रहा ब्रडलाघ हाल के न?दीक मौजूद रूचि राम साहनी के लाहौर सदन पर मोतीलाल नेहरू, गोखले, श्रीनिवास शास्त्री, सरोजनी नायडू, मदन मोहन मालवीय एवं अन्य जैसी राजनैतिक हस्तियों, यहाॅं तक कि दुर्लभ अवसरों पर इनकी विद्यमानता से प्राप्त प्रेरणा भी उल्लिखित की जा सकती है। बीरबल की माॅं अति अनुदार विचारों की धर्मपरायण महिला थीं उनका जीवन में एक लक्ष्य था कि बच्चे सर्वोत्तम संभव शिक्षा ग्रहण करें। उनका उत्साहशील बलिदान था तथा कुलमिलाकर उन्होंने पांच पुत्रों को ब्रिटिश और यूरोपीय विश्वविद्यालयों में भेजने का प्रबंध किया। विरोधी रू?िवादी संबंधों के बावजूद भी पुत्रियों की शिक्षा की उपेक्षा नहीं की गई तथा बीरबल की ब?ी बहन पंजाब विश्वविद्यालय से स्नातक करने वाली पहली महिला थीं। ऐसा उस समय परिवार और पैतृक पृष्ठभूमि थी जिसने बीरबल के जीवन को सोचने को प्रभावित किया। उत्तरवर्ती वर्षों में अपने आपको ��प्राचीन खंड का खंड�� कहने में गर्वित होते थे जो वह संबंध के हर बोध में थे। सत्यता से कहा जा सकता है कि उन्हें गहन देशभक्ति, उनका विज्ञान का प्रेम व बाह्य जीवन तथा असली गुण पिता से विरासत में मिले थे जिन्होंने देश के कार्य में न डिगने वाला प्रतीक बनाया, जबकि अपनी विनयशील व स्व-बलिदानी माॅं से अपनी उदारता और अपने गहन लगाव को आत्मसात किया।